मिनी मलिहाबाद है रायबरेली का पहरेमऊ गांव।। Raebareli news ।।

शिवाकांत अवस्थी

महराजगंज/रायबरेली: क्षेत्र के पहरेमऊ गांव के किसान परंपरागत खेती छोड़ आम की बागवानी को अपना रहे हैं। फलों का राजा आम यहां के किसानों के लिए मुफीद साबित हो रहा है। सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम के बाग लगा कर किसान पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रहे हैं। पेड़ों के बीच सहफसली खेती कर किसान आम के आम गुठलियों के दाम कमा रहे हैं। व्यापारी पहरेमऊ समेत आसपास गांवों के आमों की आपूर्ति राजधानी तक करते हैं। इसीलिए लोग पहरेमऊ को मिनी मलिहाबाद के नाम से पुकारते हैं।

      आपको बता दें कि, बागवानों की जुबानी, राजू खान कहते हैं कि, आम के बाग से कई फायदे हैं। बाग में सहफसली सरसों व आलू की खेती कर दोहरा लाभ मिलता है। मुख्य रूप से दशहरी, चौसा, बांबे ग्रीन प्रजाति के आम की पैदावार यहां अधिक है। इसकी मांग गोरखपुर, बलिया, कानपुर व लखनऊ की मंडी में अधिक है। व्यापारी नेपाल के काठमांडू की मंडी तक आम भेजते हैं।

   पहरेमऊ के आनंद सिंह उर्फ काका ने गांव में ही लगभग 20 बीघा में आम का बाग लगा रखा है। उनका कहना है कि, बौर आने से फल बड़ा होने तक व्यापारी स्वयं देखभाल करते हैं। इनके बागों के आम की महक भी जनपद समेत महानगरों की मंडियों तक है।

  वहीं व्यापारी रामनरेश सोनकर ने बताया कि, वे लोग करीब 30 वर्षों से इस क्षेत्र में आम के बाग लेकर व्यापार कर रहे हैं। इनका कहना है कि, पहले ज्यादा देसी आम ही होता था, लेकिन अब तमाम तरह की प्रजातियां दशहरी, चौसा, सफेदा, आदि प्रकार के आम की प्रजातियां पैदा होने लगी है। जबकि किसान अंकित सिंह ने बताया कि, आम के बाग लगाने से उन लोगों को काफी फायदा होता है। एक बार पेड़ तैयार हो जाने के बाद व्यापारियों के हाथ बेच दिया जाता है। इससे अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है।

  कृषि विज्ञान केंद्र दरियापुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ0 ए0के0 तिवारी ने बताया कि, कीटों का प्रबंधन समय से न करने पर आम का उत्पादन 40 से 50 प्रतिशत तक प्रभावित हो जाता है। उन्होंने कहा कि, मधुवा कीट भूरे रंग के होते हैं। कीट शिशु व वयस्क दोनों अवस्था में पेड़ की कोमल पत्तियों, टहनियां व बौर का रस चूस लेते हैं।

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