फ्लाई एश प्रवाहित करने से जलस्रोत में प्रदूषण, बिजलीघर संचालकों को परवाह नहीं-रिपोर्ट

सार.........

राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि, संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है, जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है। इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है।

विस्तार.........

लखनऊ: कोयला आधारित बिजलीघरों के संचालकों पर फ्लाई एश से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए जुर्माना लगाने और पीडित स्थानीय निवासियों को मुआवजा देने के प्रावधान के बावजूद ऐसी घटनाएं देश में निरंतर होती रहती हैं, और मुआवजा का पूरा भुगतान कभी नहीं होता। इसके अलावा फ्लाई एश मिलने से प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। एक नए अध्ययन ने पाया है कि, देश के विभिन्न राज्यों के निवासियों को इन पर्यावरणीय दुर्घटनाओं की वजह से कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

   आपको बता दें कि, यह रिपोर्ट–“लेस्ट वी फॉरगेट-ए स्टेटस रिपोर्ट ऑफ नेगलेक्ट ऑफ कोल एश एक्सिडेट इन इंडिया ( मई 2019-मई2021)” जिसे असर सोशल इंपैक्ट एडवाइजर्स, सेंटर फार रीसर्च ऑन इनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट भारत में अगस्त 2019 से मई 2021 के बीच कोयला आधारित बिजली प्रकल्पों में फ्लाई एश से जुड़ी दुर्घटनाओं की स्थिति के बारे में है। यह रिपोर्ट इस तरह की आठ दुर्घटनाओं के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत छह राज्यों में हुई दुर्घटनाएं शामिल हैं।

     उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अनपारा थर्मल पावर स्टेशन से निकले फ्लाई एश का उपयोग बहुत कम होता है, और फ्लाई एश को नियमित रूप से रिहंद जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिससे रिहंद जलाशय का पानी प्रदूषित हो रहा है। रिहंद में प्रवाहित फ्लाई एश का 21 प्रतिशत अनपारा थर्मल पावर स्टेशन का होता है। स्थानीय निवासियों ने बताया कि, पिछले कुछ वर्षों में एशपौंड के प्रवाह को रोकने के लिए अनेक आदेश निर्गत हुए, पर सात-आठ वर्ष बीतने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।

   रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है कि, कुछ जगहों पर दुर्घटना के कई महीनों के बाद भी फ्लाई एश खेतों में पड़ी है, कुछ जगहों पर गांवों के आसपास के कुओं में राख भरी हुई है, जिससे वह उपयोग के लायक नहीं रह गया है। पावर प्लांट न केवल राख हटाने, स्थल को दुरुस्त करने, स्वास्थ्यगत प्रभावों का निदान निकालने में नाकाम रहा, बल्कि प्रभावित गांववालों को पूरा मुआवजा देने में भी नाकाम रहा है।

   अध्ययन में पता चला है कि, हवा में मिली राख की वजह से क्षय रोग (टीबी) और सांस संबंधी बीमारियां समूचे केन्द्रीय भारत में फैल रही हैं। इसका प्रभाव प्राकृतिक जलस्रोतों के गंभीर प्रदूषण के रूप में भी दिख रहा है, क्योंकि राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है। 


 
    अध्ययन के दौरान मध्यप्रदेश के एस्सार थर्मल पावर स्टेशन, विंध्याचल थर्मल पावर प्लांट और रिलायंस ससान अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट, उत्तर प्रदेश के अनपारा थर्मल पावर स्टेशन, ओडीसा के तालचर थर्मल पावर स्टेशन, झारखंड के बोकारो थर्मल पावर स्टेशन, तमिलनाडु के उत्तर चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन और बिहार के कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन में कोयले की राख से संबंधित दुर्घटनाओं का आंकलन किया गया है। 

   राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि, संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है, जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है। इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है।

  ताजी दुर्घटना 15 जून को छत्तीसगढ़ के कोबरा में एनटीपीसी और एसीबी इंडिया पावर प्लांट में हुई, जिसमें एश डैम दरार आने से राख मकान और खेतों में फैल गई, स्थानीय लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य पर संकट उत्पन्न हो गया है। 

   केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 22 अप्रैल को थर्मल पावर स्टेशनों में जमा फ्लाई एश का उपयोग करने के बारे में अधिसूचना का मसौदा प्रकाशित किया। अधिसूचना ने फ्लाई एश का 100 प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कोयला या लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर प्लांट को तीन से पांच वर्षों का अतिरिक्त समय दिया और उसके अन्य प्रावधानों में फ्लाई एश प्रबंधन प्रणाली के टिकाऊपन को रखा गया है। इसे 22 अप्रैल से दो महीने के लिए सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए खुला रखा गया था।


 
   मंथन अध्ययन केंन्द्र के पॉलिसी रिसर्चर श्रीपाद धर्माधिकारी ने प्रारुप अधिसूचना में उपयोगिता शब्द के प्रायोग पर सवाल उठाया है। प्रारुप अधिसूचना जैसा अभी है, उसमें फ्लाई-एश के उपयोग और निपटारा में फर्क नहीं किया गया है। यह उपयोग फ्लाई एश को किसी गहरे इलाके में छोड़ देने या बेकार खदान में डाल देने जैसा है। उन्होंने कहा कि, यह फ्लाई एश को वहां से हटा देने से अधिक कुछ नहीं है। उन्होंने इस तरह के कचरे का निपटारा करने में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत को रेखांकित किया है।

   सह-लेखक असर की मेधा कपूर ने कहा कि, सभी फ्लाई-एश दुर्घटनाओं में एक चीज समान है। वह पारदर्शिता, जबाबदेही और अनुपालन के प्रति औद्योगिक वचनबध्दता और ऐसी प्रशासनिक प्रणाली जो कानून को लागू करने, दंड देने और निगरानी करने में तत्पर हो, पर इसमें निरंतर कमी रही है।      

रिपोर्ट में आगे की कार्रवाई के लिए सिफारिशें भी शामिल की गई है। जिसमें कोयला की राख से संबंधित दुर्घटनाओं में आपराधिक मामला चलाने, एश पौंडों के लिए बाध्यताकारी नियमित तकनीकी आंकलन, पारदर्शिता में बढ़ोतरी, सूचनाओं की सार्वजनिक उपलब्धता और संबंधित अधिकारियों को जिम्मेवार बनाए रखने के लिए नागरिक समाज का सामुहिक प्रयास शामिल हैं।

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